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वित्तीय वर्ष 2023-24 GSTR-9 और GSTR-9C फाइलिंग की आखिरी तारीख नजदीक: जानें कैसे बचें जुर्माने से

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  जीएसटी (GST) लागू होने के बाद से व्यवसायों के लिए वार्षिक रिटर्न फाइल करना एक महत्वपूर्ण दायित्व बन गया है। वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए GSTR-9 (Annual Return) और GSTR-9C (Reconciliation Statement) फाइलिंग की आखिरी तारीख करीब आ रही है। सरकार ने जीएसटी रिटर्न फाइलिंग के लिए निर्धारित तारीखों का पालन न करने पर भारी जुर्माना और ब्याज लागू किया है। इस ब्लॉग में, हम जानेंगे कि समय पर फाइलिंग क्यों जरूरी है और किन तरीकों से आप जुर्माने से बच सकते हैं। --- GSTR-9 और GSTR-9C क्या हैं? GSTR-9 (Annual Return): यह वार्षिक रिटर्न है, जिसमें पिछले वित्तीय वर्ष के दौरान दर्ज सभी मासिक और त्रैमासिक रिटर्न (GSTR-1, GSTR-3B) की जानकारी दी जाती है। यह उन व्यवसायों के लिए अनिवार्य है, जिनका सालाना कारोबार ₹2 करोड़ या उससे अधिक है। GSTR-9C (Reconciliation Statement): यह एक ऑडिट रिपोर्ट है, जिसमें वित्तीय बयानों और GSTR-9 के डेटा के बीच समन्वय दिखाया जाता है। यह उन व्यवसायों के लिए अनिवार्य है, जिनका सालाना कारोबार ₹5 करोड़ या उससे अधिक है। --- GSTR-9 और 9C फाइलिंग की आखिरी तारीख सरकार द्वारा वित्तीय ...

संगत का असर

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एक बहुत ही प्रतापी राजा था, जो हमेशा अपनी प्रजा का ख्याल रखता था। उसकी प्राथमिकता थी प्रजा की छोटी-छोटी जरूरतों को पूरा करना, धार्मिक कार्यों में बढ़-चढ़कर भाग लेना और हर कार्य को अच्छे ढंग से निभाना। जनता का भी अपने राजा पर हर प्रकार से भरोसा था, इसलिए वह अपने राजा को बहुत सम्मान देता था। समय का चक्र घूमा और समय ने अपना रंग दिखाया। राजा बीमार हो गए। तमाम राज्य के वैद्यों से लेकर बाहर से आए हुए वैद्यों ने अनेकों उपचार किए, लेकिन कोई असर नहीं हुआ। अंततः राजा एक दिन सबको छोड़कर स्वर्ग सिधार गए। उनके बाद राज्य का प्रबंधन उनके एकमात्र राजकुमार को सौंपा गया। चूंकि राजकुमार अवयस्क थे, इसलिए मंत्रियों और सचिवों को यह निर्देश दिया गया कि वे राजकुमार का सही मार्गदर्शन करते रहें। धीरे-धीरे राजकुमार ने अपने पिता के पदचिह्नों पर चलते हुए राज्य में काम करना शुरू किया, लेकिन कम अनुभव और गलत संगत का असर धीरे-धीरे दिखने लगा। सर्दी का मौसम था और कड़ाके की ठंड पड़ रही थी। राजकुमार ने एलान किया कि जो भी व्यक्ति महल के पास स्थित तालाब में स्नान करेगा और तालाब के बीच गड़ी हुई लकड़ी पर पूरी रात गीले कपड़ों ...

और कुछ बाकी है।

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एक गांव में एक गरीब ब्राह्मण रहता था, जो बहुत ही विनम्र और शांत स्वभाव का था। वह पढ़ा-लिखा विद्वान था और ज्योतिष, भाग्यलिपि इत्यादि का अध्ययन करता था, लेकिन अपनी व्यक्तिगत स्थिति इतनी दयनीय थी कि जब तक वह पूजा-पाठ करके कुछ लेकर घर नहीं लौटते थे, तब तक घर में चूल्हा नहीं जलता था। एक दिन की बात है। उनके घर में भोजन बनाने के लिए कुछ भी सामग्री नहीं थी। उनकी पत्नी, जो स्वभाव में पंडित जी के विपरीत थी, बोली, "आज भोजन बनाने के लिए घर में कुछ भी सामग्री नहीं है, इसलिए आप जल्दी आकर कुछ सामग्री लाकर दें, तभी मैं कुछ बना पाऊंगी, वरना हमें भूखे ही सोना पड़ेगा।" पंडित जी घर में पूजा-पाठ सब करके बाहर निकले। रास्ते में चलते हुए उन्हें सड़क के किनारे एक इंसान की खोपड़ी (हड्डी) पड़ी हुई मिली। जैसे ही उनकी नजर उस खोपड़ी पर पड़ी, उन्होंने देखा कि उस खोपड़ी पर भाग्य में लिखा हुआ था "और कुछ बाकी है"। पंडित जी यह देखकर हैरान रह गए और सोचने लगे, "यह इंसान मर चुका है, उसके शरीर का सारा मांस गल चुका है, हड्डियां अलग हो चुकी हैं, फिर भी उसके भाग्य में लिखा है 'और कुछ बाकी है', ...

शेयर बाजार व्यापार या जुआ?

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हर इंसान अपनी जिंदगी में तरक्की के लिए ढेरों उपाय करता है, बहुत सारा पैसा कमाना चाहता है। इसके लिए वह तरह-तरह के रास्ते अपनाता है, उन्हीं रास्तों में से एक रास्ता कुछ लोग शेयर बाजार का भी चुनते हैं। हालांकि, कुछ लोगों का यह मानना है कि यह तो सट्टा बाजार है, जुआ है और इससे दूर ही रहना चाहिए। किन्तु मेरा मानना है कि यह सट्टा बाजार या जुआ नहीं, बल्कि एक प्रकार का व्यापार है। जब कोई कंपनी अपनी वस्तु बनाती है और बाजार में उसे बेचती है, तो वह व्यापार हुआ। तो फिर उसी कंपनी का शेयर जुआ कैसे हो सकता है? जब शेयर बाजार में लिस्टेड होकर शेयर खरीदे और बेचे जाते हैं, तो यह व्यापार नहीं होगा, तो क्या होगा? जैसे कोई वस्तु कम कीमत पर खरीदकर अधिक कीमत पर बेची जाती है, ठीक वैसे ही शेयर बाजार में भी आप कम में खरीदकर अधिक में बेच सकते हैं, चाहे वह एक दिन में हो या एक साल में। किसी भी व्यापार के लिए उस व्यापार की जानकारी होना आवश्यक है। ठीक उसी तरह, शेयर बाजार से कमाई करने के लिए यह जरूरी है कि पहले उसकी सही जानकारी प्राप्त की जाए, फिर शुरुआत की जाए। बिना जानकारी के व्यापार करना जोखिमपूर्ण हो सकता है, और इस...

नौकरी या व्यापार।।

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  बचपना तो अभी गया भी नहीं था कि नित नई जिम्मेदारियां घेरना शुरू कर देती हैं। इस जिम्मेदारी को निभाने के लिए हमारे जीवन में अर्थ की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। यदि अर्थ है, तो बड़ी से बड़ी जिम्मेदारी हल्की लगने लगती है, और यदि नहीं है, तो जीवन ऐसा संघर्षमय हो जाता है कि इसे शब्दों में बयां करना मुश्किल हो जाता है। कभी-कभी तो जिम्मेदारी का बोझ और अर्थ की कमी पूरे परिवार को बर्बाद कर देती है। अब बात करते हैं कि अपने जीवन में अर्थ यानी पैसे की कमी को कैसे दूर करें। आजकल का जो समय है और जो आनेवाला है, वह बहुत ही सुंदर है। यदि धैर्यपूर्वक पैसे कमाने की कोशिश की जाए तो कई रास्ते हैं, जिनसे पैसे कमाए जा सकते हैं। किन्तु, रास्ते कौन से अपनाने हैं, यह आप पर निर्भर करता है, आपके पास मौजूद साधनों पर निर्भर करता है, और आपके ज्ञान और क्षमता पर निर्भर करता है। ऐसा नहीं कि हर इंसान में एक समान क्षमता हो, इसलिए दूसरों की नकल करने से भी बचें और अपनी क्षमता तथा रुचि के अनुसार काम करें। नौकरी करें या व्यापार, हर जगह काबिलियत के साथ-साथ धैर्य की बहुत जरूरत होती है, लेकिन चुनाव सही करें। पढ़ाई पूरी ह...

धारा 370 हटाना: सही या गलत?

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  धारा 370 को हटाने के बाद कुछ लोग इसका विरोध कर रहे हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या इसका विरोध वाजिब है? अगर कश्मीर के विकास में बाधा आ रही थी, योजनाओं का लाभ आम जनता तक नहीं पहुंच रहा था, और कश्मीर के लोग बाकी भारतीयों के साथ खुलकर नहीं घुल-मिल पा रहे थे, तो क्या इसे जारी रखना सही होता? विरोध के तर्क और उनका विश्लेषण कुछ लोग इस बात का तर्क दे रहे हैं कि धारा 370 हटने से: 1. बाहरी लोगों का आगमन बढ़ेगा। 2. जनसंख्या वृद्धि से पर्यावरण को नुकसान होगा। 3. कश्मीर की सुंदरता पर प्रभाव पड़ेगा। ये चिंताएं निश्चित रूप से वाजिब हैं, लेकिन ये विरोध के पर्याप्त कारण नहीं हो सकते। इन मुद्दों से निपटने के लिए राज्य सरकार और केंद्र सरकार सुरक्षा और पर्यावरण संरक्षण के लिए कदम उठा सकती हैं, जैसा कि अन्य राज्यों में किया जाता है। लेकिन यदि निवेश नहीं होगा और बाहरी लोग कश्मीर से जुड़ेंगे नहीं, तो वहां के विकास का सपना अधूरा ही रहेगा। कश्मीर को मुख्यधारा में लाने के लिए धारा 370 एक बाधा थी, जिसे हटाना आवश्यक था। लद्दाख और जम्मू के साथ न्याय धारा 370 का लाभ केवल कुछ विशेष वर्गों तक सीमित था। जम्मू और ल...

मंदी की आहट।।

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  विपक्ष का दावा है कि देश भारी मंदी का सामना कर रहा है, जबकि सत्ता पक्ष इस बात को पूरी तरह खारिज करता है। लेकिन वित्त मंत्री के हालिया बयान, जिसमें कहा गया कि "ओला/उबर के चलते ऑटो सेक्टर में मंदी है क्योंकि लोग ज्यादा कार नहीं खरीद रहे हैं," इस बात की ओर इशारा करते हैं कि कहीं न कहीं मंदी का असर तो है। हालांकि, यह तर्क विवादास्पद है। ऑटो सेक्टर में केवल कारें नहीं आतीं; इसमें अन्य वाहनों की बिक्री भी शामिल है। अगर कारों की बिक्री कम हुई है, तो इसका मतलब यह नहीं कि अन्य वाहनों की बिक्री पर भी ओला/उबर का प्रभाव पड़ा है। इससे यह स्पष्ट होता है कि सरकार अंदरूनी तौर पर कहीं न कहीं चिंतित है। --- आर्थिक गतिविधियों में सुस्ती के संकेत 1. आरबीआई का रिज़र्व फंड लेना: सरकार का आरबीआई से रिज़र्व फंड लेना आर्थिक दबाव का संकेत देता है। 2. आयकर विभाग का अग्रिम कर दबाव: सितंबर माह में व्यापारियों से मार्च तक के अनुमानित कर की गणना मांगना और अग्रिम कर भुगतान के लिए दबाव बनाना, आर्थिक गतिविधियों में सुस्ती की ओर इशारा करता है। आयकर अधिनियम की धारा 234B और 234C पहले से ही उन करदाताओं पर लागू ...