धारा 370 हटाना: सही या गलत?
धारा 370 को हटाने के बाद कुछ लोग इसका विरोध कर रहे हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या इसका विरोध वाजिब है? अगर कश्मीर के विकास में बाधा आ रही थी, योजनाओं का लाभ आम जनता तक नहीं पहुंच रहा था, और कश्मीर के लोग बाकी भारतीयों के साथ खुलकर नहीं घुल-मिल पा रहे थे, तो क्या इसे जारी रखना सही होता?
विरोध के तर्क और उनका विश्लेषण
कुछ लोग इस बात का तर्क दे रहे हैं कि धारा 370 हटने से:
1. बाहरी लोगों का आगमन बढ़ेगा।
2. जनसंख्या वृद्धि से पर्यावरण को नुकसान होगा।
3. कश्मीर की सुंदरता पर प्रभाव पड़ेगा।
ये चिंताएं निश्चित रूप से वाजिब हैं, लेकिन ये विरोध के पर्याप्त कारण नहीं हो सकते। इन मुद्दों से निपटने के लिए राज्य सरकार और केंद्र सरकार सुरक्षा और पर्यावरण संरक्षण के लिए कदम उठा सकती हैं, जैसा कि अन्य राज्यों में किया जाता है।
लेकिन यदि निवेश नहीं होगा और बाहरी लोग कश्मीर से जुड़ेंगे नहीं, तो वहां के विकास का सपना अधूरा ही रहेगा। कश्मीर को मुख्यधारा में लाने के लिए धारा 370 एक बाधा थी, जिसे हटाना आवश्यक था।
लद्दाख और जम्मू के साथ न्याय
धारा 370 का लाभ केवल कुछ विशेष वर्गों तक सीमित था। जम्मू और लद्दाख को इससे कोई विशेष फायदा नहीं हुआ। लद्दाख के लोगों ने धारा 370 हटने के बाद खुशी जाहिर की है। यह स्पष्ट करता है कि यह फैसला काफी पहले हो जाना चाहिए था।
राजनीतिक विरोध: एक बड़ी बाधा
इस फैसले का विरोध केवल इसलिए करना कि इसे नरेंद्र मोदी की सरकार ने लिया है, सही नहीं है। कुछ फैसले ऐतिहासिक होते हैं और उनका महत्व वर्षों बाद समझ में आता है। यह फैसला भी ऐसा ही है। यदि यह भारत के खिलाफ होता, तो पाकिस्तान खुशी मना रहा होता। लेकिन आज, पाकिस्तान के नेता और मीडिया बौखलाए हुए हैं, जो यह साबित करता है कि यह फैसला देशहित में है।
हमारी जिम्मेदारी
जिस दिन कश्मीर भारत का हिस्सा बना, उस दिन से गलतियां होती रहीं। अब जाकर यह गलती सुधारी गई है। एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते हमारा कर्तव्य है कि हम इस फैसले का स्वागत करें और सरकार का सहयोग करें। जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के पुनर्गठन में योगदान दें।
कुछ फैसले राष्ट्र के भविष्य को आकार देते हैं। धारा 370 को हटाने का फैसला भी ऐसा ही है। इसे केवल राजनीतिक दृष्टिकोण से न देखकर देशहित में समर्थन देना चाहिए।
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