मंदी की आहट।।
विपक्ष का दावा है कि देश भारी मंदी का सामना कर रहा है, जबकि सत्ता पक्ष इस बात को पूरी तरह खारिज करता है। लेकिन वित्त मंत्री के हालिया बयान, जिसमें कहा गया कि "ओला/उबर के चलते ऑटो सेक्टर में मंदी है क्योंकि लोग ज्यादा कार नहीं खरीद रहे हैं," इस बात की ओर इशारा करते हैं कि कहीं न कहीं मंदी का असर तो है।
हालांकि, यह तर्क विवादास्पद है। ऑटो सेक्टर में केवल कारें नहीं आतीं; इसमें अन्य वाहनों की बिक्री भी शामिल है। अगर कारों की बिक्री कम हुई है, तो इसका मतलब यह नहीं कि अन्य वाहनों की बिक्री पर भी ओला/उबर का प्रभाव पड़ा है। इससे यह स्पष्ट होता है कि सरकार अंदरूनी तौर पर कहीं न कहीं चिंतित है।
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आर्थिक गतिविधियों में सुस्ती के संकेत
1. आरबीआई का रिज़र्व फंड लेना:
सरकार का आरबीआई से रिज़र्व फंड लेना आर्थिक दबाव का संकेत देता है।
2. आयकर विभाग का अग्रिम कर दबाव:
सितंबर माह में व्यापारियों से मार्च तक के अनुमानित कर की गणना मांगना और अग्रिम कर भुगतान के लिए दबाव बनाना, आर्थिक गतिविधियों में सुस्ती की ओर इशारा करता है। आयकर अधिनियम की धारा 234B और 234C पहले से ही उन करदाताओं पर लागू होती है जो अग्रिम कर कम जमा करते हैं। फिर, इस प्रकार की अधिसूचनाओं की आवश्यकता क्या है?
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कृषि क्षेत्र में सुस्ती: पलायन है मुख्य कारण
कृषि क्षेत्र में सुस्ती का एक बड़ा कारण गांवों से शहरों की ओर पलायन है। किसान, जो पहले खेती करते थे, अब खेती छोड़ चुके हैं। खेती से पर्याप्त नकद आय नहीं होती, जिससे किसानों की बुनियादी जरूरतें भी पूरी नहीं हो पातीं।
बच्चों की उच्च शिक्षा, विवाह, और घर बनाने जैसी आवश्यकताओं को पूरा करना मुश्किल है।
इसलिए किसान अपने बच्चों को खेती छोड़ने और शहर जाकर नौकरी करने की सलाह देते हैं।
यह प्रवृत्ति खेती की उपेक्षा का प्रमुख कारण बन रही है। यदि यह जारी रहा, तो भविष्य में खेती का क्या होगा, यह सोचने की आवश्यकता है।
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गरीबों पर मंदी का प्रभाव
मंदी का सबसे अधिक प्रभाव गरीब और निम्न-मध्यम वर्ग पर पड़ता है।
छोटे कर्मचारियों और मजदूरों का वेतन वर्षों से एक ही स्तर पर है।
आर्थिक मंदी या तेजी का असर उनके जीवन पर न के बराबर होता है।
उनके लिए हर स्थिति में जीवन का संघर्ष जारी रहता है।
यह सवाल खड़ा होता है कि मंदी और तेजी का असल लाभ या नुकसान किसे होता है।
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समस्या का समाधान संभव है
हमारे देश में एक मजबूत और स्थिर सरकार है, जिसमें कई पढ़े-लिखे और अनुभवी नेता हैं। यह उम्मीद की जा सकती है कि यह तथाकथित मंदी भी जल्द ही नियंत्रित हो जाएगी।
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निष्कर्ष
देश में मंदी की वास्तविकता पर बहस जारी है। लेकिन यह स्पष्ट है कि आर्थिक गतिविधियों में सुस्ती के कई संकेत हैं। चाहे वह ऑटो सेक्टर हो, कृषि क्षेत्र हो, या औद्योगिक गतिविधियां – हर क्षेत्र में सुधार की आवश्यकता है।
सरकार और जनता को मिलकर काम करना होगा। विशेष रूप से, किसानों और निम्न वर्गों की समस्याओं पर ध्यान देना आवश्यक है। यदि सही समय पर कदम उठाए गए, तो यह मंदी एक बड़ी समस्या बनने से पहले समाप्त हो सकती है।
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