पूंछ कट्टा सियार और सेक्युलरवादी में समानता।

 


जंगल का एक सियार, एक दिन खाने की तलाश में शहर पहुंचा। वहां, खाने की लालच में वह एक घर में घुस गया। घर का मालिक जाग गया और सियार को देखकर शोर मचाने लगा। घबराकर सियार भागने लगा, लेकिन भागते समय उसकी पूंछ कहीं फंस गई और कट गई।


जंगल लौटने पर उसके साथियों ने उसकी बिना पूंछ की हालत देखकर उसका खूब मजाक उड़ाया। सियार को यह बात बहुत चुभी। उसने सोचा कि अगर सारे सियार अपनी पूंछ कटवा लें, तो कोई उसका मजाक नहीं उड़ाएगा।


एक दिन उसने सभी सियारों को बुलाया और चालाकी से कहा, "भाइयों, ये पूंछ किसी काम की नहीं है। उल्टा, यह हमारे लिए कई मुश्किलें खड़ी करती है। मुझे देखो, मैंने अपनी पूंछ कटवा दी है और अब कितना आजाद महसूस कर रहा हूं। न कोई बोझ, न कोई परेशानी!"


सियार अपनी बात को सच साबित करने के लिए अपनी पूंछ न होने की आजादी का दिखावा करने लगा। उसने खुशी-खुशी अपनी कमर हिलाते हुए कहा, "देखो, मैं कितना मजे से घूम रहा हूं। तुम्हें भी अपनी पूंछ कटवा देनी चाहिए।"


सियारों के सरपंच ने उसकी बात ध्यान से सुनी और कहा, "तुम्हारी आजादी तुम्हें मुबारक। हमें हमारी पूंछ से कोई शिकायत नहीं है। हम जैसे हैं, वैसे ही खुश हैं। तुम 'पूंछ-कट्टा सियार' बनकर घूमते रहो, लेकिन हमें ऐसा नहीं बनना है।"

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कहानी की सीख:

यह कहानी सिखाती है कि लोग अक्सर अपनी कमियों को छिपाने के लिए दूसरों को भी वैसा ही बनाने की कोशिश करते हैं। लेकिन हमें अपनी खूबियों और कमियों के साथ खुश रहना चाहिए और दूसरों की चालाक बातों में नहीं आना चाहिए।

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(पंचतंत्र की कहानी से)

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