जल संकट: समस्या और समाधान।।

 



बारिश हो तो संकट, ना हो तो संकट। ज्यादा बारिश होने पर बाढ़ की समस्या, और कम होने पर सूखे की समस्या। ऐसा लगता है कि समस्या हर हाल में होना तय है। लेकिन इसका कारण क्या है? क्या प्रकृति को दोष देना सही है, या फिर हमें अपनी आदतों और लापरवाहियों पर ध्यान देना चाहिए?

हम अक्सर खुद समस्याएं खड़ी करते हैं और बाद में सिर पकड़कर पछताते हैं। अच्छी बारिश के बावजूद, हम जल संचय करने में असफल रहते हैं। जब जल संचय का सही समय होता है, तब हम इसे नजरअंदाज कर देते हैं। और जब कम बारिश होती है, तो रोना-धोना शुरू कर देते हैं।
एक पुरानी कहावत है: "अब पछताए होत क्या, जब चिड़िया चुग गई खेत।"
अभी समय है कि हम इस समस्या की जड़ को समझें और सही कदम उठाएं। वरना, आने वाले समय में हमें और भी विकट परिस्थितियों का सामना करना पड़ेगा।


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जल संरक्षण: जिम्मेदारी सबकी

जल संचय केवल सरकार की जिम्मेदारी नहीं है, और न ही यह सिर्फ आम जनता के भरोसे छोड़ा जा सकता है। इस दिशा में सभी को मिलकर काम करना होगा।
यह काम केवल औपचारिकता के लिए नहीं किया जा सकता। इसे समर्पण और जिम्मेदारी के भाव से करना होगा। हमें यह समझना होगा कि यह प्रयास न केवल हमारे लिए, बल्कि हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए है।

आज आप देख सकते हैं कि एक ही राज्य में, एक तरफ बाढ़ का कहर है और दूसरी तरफ लोग सूखे से जूझ रहे हैं। क्या बाढ़ का पानी सूखाग्रस्त इलाकों में उपयोग नहीं किया जा सकता? बिल्कुल किया जा सकता है। इसके लिए केवल इच्छाशक्ति और ठोस योजनाओं की आवश्यकता है।


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विकास बनाम पर्यावरण

आजकल विकास के नाम पर प्राकृतिक संसाधनों का विनाश हो रहा है।

तालाबों को पाट दिया जा रहा है।

नदियां नालों में बदल रही हैं।

पहाड़ों की खुदाई और जंगलों की कटाई तेजी से बढ़ रही है।


इससे न केवल पर्यावरण का संतुलन बिगड़ रहा है, बल्कि जल संकट भी गहराता जा रहा है। प्रकृति से खिलवाड़ का परिणाम बेहद गंभीर हो सकता है। जब प्रकृति अपना खेल दिखाती है, तो उसे संभालना इंसान के बस में नहीं होता।

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समाधान: कदम जो उठाने होंगे

1. जल स्रोतों का संरक्षण:
पुराने तालाबों और जल स्रोतों का पुनर्निर्माण करना।


2. नदी जोड़ परियोजना:
छोटी नदियों को बड़ी नदियों से जोड़कर पानी का सही वितरण सुनिश्चित करना।


3. जल संचय:
बारिश के पानी को संरक्षित करने के उपाय, जैसे वर्षा जल संचयन और भूगर्भ जल को रिचार्ज करना।


4. पर्यावरण संरक्षण:
अधिक से अधिक पेड़ लगाना, पहाड़ों और जंगलों की कटाई रोकना।


5. जागरूकता:
आम जनता को जल संरक्षण के महत्व को समझाना और उन्हें इस दिशा में भागीदार बनाना।


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निष्कर्ष

यह काम आसान नहीं है, लेकिन अगर सरकार और आम जनता सच्चे मन से मिलकर काम करें, तो इसे संभव बनाया जा सकता है। हमें आज ही कदम उठाने होंगे ताकि भविष्य में जल संकट वरदान के रूप में बदल सके।

जल ही जीवन है। इसे बचाना न केवल हमारी जिम्मेदारी है, बल्कि हमारी प्राथमिकता भी होनी चाहिए। वरना वह दिन दूर नहीं जब जल हमारे लिए संकट बन जाएगा।


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