संगत का असर
एक बहुत ही प्रतापी राजा था, जो हमेशा अपनी प्रजा का ख्याल रखता था। उसकी प्राथमिकता थी प्रजा की छोटी-छोटी जरूरतों को पूरा करना, धार्मिक कार्यों में बढ़-चढ़कर भाग लेना और हर कार्य को अच्छे ढंग से निभाना। जनता का भी अपने राजा पर हर प्रकार से भरोसा था, इसलिए वह अपने राजा को बहुत सम्मान देता था।
समय का चक्र घूमा और समय ने अपना रंग दिखाया। राजा बीमार हो गए। तमाम राज्य के वैद्यों से लेकर बाहर से आए हुए वैद्यों ने अनेकों उपचार किए, लेकिन कोई असर नहीं हुआ। अंततः राजा एक दिन सबको छोड़कर स्वर्ग सिधार गए। उनके बाद राज्य का प्रबंधन उनके एकमात्र राजकुमार को सौंपा गया। चूंकि राजकुमार अवयस्क थे, इसलिए मंत्रियों और सचिवों को यह निर्देश दिया गया कि वे राजकुमार का सही मार्गदर्शन करते रहें।
धीरे-धीरे राजकुमार ने अपने पिता के पदचिह्नों पर चलते हुए राज्य में काम करना शुरू किया, लेकिन कम अनुभव और गलत संगत का असर धीरे-धीरे दिखने लगा।
सर्दी का मौसम था और कड़ाके की ठंड पड़ रही थी। राजकुमार ने एलान किया कि जो भी व्यक्ति महल के पास स्थित तालाब में स्नान करेगा और तालाब के बीच गड़ी हुई लकड़ी पर पूरी रात गीले कपड़ों में बिताएगा, उसे सुबह सौ स्वर्ण मुद्राएं दी जाएंगी। यह सुनकर एक गरीब आदमी ने सोचा कि एक रात की बात है, उसे एक बार आजमाना चाहिए, शायद उसकी गरीबी दूर हो जाएगी। उसने जैसा राजा ने कहा था, वैसा ही किया।
सुबह जब वह राजा के पास इनाम लेने के लिए पहुंचा, तो राजा ने पूछा, "तुमने रात कैसे बिताई?" गरीब आदमी ने जवाब दिया, "राजन, मैंने आपके महल से निकलने वाले दीपक के प्रकाश को देखकर रात बिताई।" राजा ने कहा, "फिर तो तुम्हें इनाम नहीं मिलेगा क्योंकि तुमने मेरे महल के दीपक के प्रकाश से गर्मी लेकर तालाब में रात बिताई है। यह सुनकर वह आदमी रोते-रोते घर लौट गया।
यह बात दूसरे राज्य की राजकुमारी को पता चली और वह बहुत दुखी हुई। उसने मन ही मन राजा को एक सबक सिखाने की ठान ली। एक दिन राजकुमारी ने राजा को दोपहर के भोजन के लिए आमंत्रित किया। उस समय गर्मी का मौसम आ चुका था।
राजा राजकुमारी के महल पहुंचे, जहां उनका शानदार स्वागत किया गया। कई प्रकार के व्यंजन पेश किए गए, लेकिन उन सभी व्यंजनों में चुपके से अत्यधिक नमक और मिर्च डाली गई थी। राजकुमारी ने राजा से कहा, "आप भोजन शुरू करें," और खुद पानी लेकर दूर बैठ गई। जैसे ही राजा ने खाना शुरू किया, उसका मुंह जलने लगा। वह पानी ढूंढने लगे। राजकुमारी ने कहा, "पानी मत पीजिए, आप खाना खाइए।" राजा बोले, "मेरा मुंह जल रहा है, आप खाने की बात कर रही हैं।" राजकुमारी बोली, "आप वहीं से पानी देखकर अपनी प्यास बुझाइए और फिर खाना खाइए।"
राजा को गुस्सा आ गया और वह खाने से उठकर खड़े हो गए। उन्होंने कहा, "यह तो गलत बात है," तो राजकुमारी ने जवाब दिया, "फिर तो आपने भी जो किया, वह भी गलत था। आपने एक गरीब इंसान को कड़ाके की ठंड में तालाब में स्नान कराकर पूरी रात गीले कपड़ों में बिताने के बाद कहा कि आपने दीपक के प्रकाश से गर्मी ली है, इसलिए उसे इनाम नहीं दिया। क्या वह गलत नहीं था?"
राजा की आंखें खुल गईं। उन्होंने अपनी गलती मानी और उस गरीब आदमी को सौ स्वर्ण मुद्राएं भेंट की। बाद में उन्होंने राजकुमारी से विवाह का प्रस्ताव रखा और कहा, "यदि संगत खराब हो, तो लोग गलत दिशा की ओर बढ़ने लगते हैं। इसलिए आप मेरा विवाह अपनी राजकुमारी से कर दीजिए ताकि मुझे सही मार्गदर्शन मिलता रहे।"
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें