और कुछ बाकी है।



एक गांव में एक गरीब ब्राह्मण रहता था, जो बहुत ही विनम्र और शांत स्वभाव का था। वह पढ़ा-लिखा विद्वान था और ज्योतिष, भाग्यलिपि इत्यादि का अध्ययन करता था, लेकिन अपनी व्यक्तिगत स्थिति इतनी दयनीय थी कि जब तक वह पूजा-पाठ करके कुछ लेकर घर नहीं लौटते थे, तब तक घर में चूल्हा नहीं जलता था।


एक दिन की बात है। उनके घर में भोजन बनाने के लिए कुछ भी सामग्री नहीं थी। उनकी पत्नी, जो स्वभाव में पंडित जी के विपरीत थी, बोली, "आज भोजन बनाने के लिए घर में कुछ भी सामग्री नहीं है, इसलिए आप जल्दी आकर कुछ सामग्री लाकर दें, तभी मैं कुछ बना पाऊंगी, वरना हमें भूखे ही सोना पड़ेगा।"


पंडित जी घर में पूजा-पाठ सब करके बाहर निकले। रास्ते में चलते हुए उन्हें सड़क के किनारे एक इंसान की खोपड़ी (हड्डी) पड़ी हुई मिली। जैसे ही उनकी नजर उस खोपड़ी पर पड़ी, उन्होंने देखा कि उस खोपड़ी पर भाग्य में लिखा हुआ था "और कुछ बाकी है"। पंडित जी यह देखकर हैरान रह गए और सोचने लगे, "यह इंसान मर चुका है, उसके शरीर का सारा मांस गल चुका है, हड्डियां अलग हो चुकी हैं, फिर भी उसके भाग्य में लिखा है 'और कुछ बाकी है', आखिर क्या बाकी है?" सोचते-सोचते उन्होंने पूरा दिन यजमान की खोज में बिता दिया, लेकिन पूजा-पाठ का कोई काम नहीं मिला और उन्हें खाली हाथ लौटना पड़ा।


रास्ते में वापस लौटते समय उन्होंने सोचा कि "इस खोपड़ी के भाग्य में और क्या बाकी है" यह देखने के लिए, वे इसे अपने साथ ले आएं। उन्होंने उस खोपड़ी को अपने झोले में डाल लिया और घर की ओर चल पड़े।


घर पहुंचते ही पंडित जी ने झोला खूंटी में लटका दिया और हाथ-मुंह धोने चले गए। उनकी पत्नी ने देखा कि झोला टंगा हुआ है, तो उन्हें लगा कि पंडित जी कुछ लेकर आए हैं। जब उन्होंने झोले को खोला, तो देखा कि उसमें एक इंसान की खोपड़ी थी। यह देखकर वह गुस्से से लाल-पीली हो गईं और गुस्से में खोपड़ी को उखल में डालकर कूटने लगीं।


पंडित जी ने जब यह देखा, तो आश्चर्यचकित होकर पूछा, "शाम के समय तुम क्या कूट रही हो?" पत्नी ने उत्तर दिया, "वही जो आपने लाया था।" पंडित जी को यह सुनकर हैरानी हुई क्योंकि उन्होंने तो ऐसा कुछ भी नहीं लाया था। वह बोले, "मैंने क्या लाया था?" पत्नी ने कहा, "वही इंसान की खोपड़ी, जो आपने लाया था।" यह सुनकर पंडित जी को सब कुछ याद आ गया और उन्होंने समझ लिया कि खोपड़ी के भाग्य में "कूटना" बाकी था, इसलिए उस पर लिखा था "और कुछ बाकी है।"


कुछ इसी तरह का प्रसंग मैंने सोशल मीडिया पर एक वीडियो के माध्यम से देखा था। उसमें एक चिता, जो अभी-अभी जलाने के लिए रखा गया था, जलने से पहले ही तेज बहाव वाले पानी में बहकर चला गया। यह देखकर मुझे पंडित जी की कहानी याद आ गई, और मैंने सोचा कि इसे आपके साथ साझा करना चाहिए।

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